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आज प्रदेश भर में कृष्ण जन्म उत्सव मनाया गया इन्हीं के साथ मैनपुर तहसील से 3 किलोमीटर दूर ग्राम देहार गुड़ा में कृष्ण कृष्ण जन्म उत्सव के रूप में "कृष्ण झूला" का आयोजन रखा गया था! जो कि बीते हुए कल शुक्रवार शाम को आरंभ किया गया और आज दिन शनिवार शाम तक यह कार्यक्रम विसर्जन किया गया।
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सभी जगह इस वर्ष 2 दिन यानी शुक्रवार और शनिवार को कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया गया क्योंकि तिथि घट बढ़ होने से ऐसा हो जाता है परंतु यथार्थ रूप में देखा जाए तो 24 augast दिन शनिवार को ही कृष्ण जन्म अष्टमी का पर्व था।
अक्सर लोग 2 दिन एक ही तिथि होने के कारण कंफ्यूज हो जाते हैं इस वर्ष भी कमरछठ 21 तारीख को था परंतु अगले दिन 22 तारीख को भी सष्टमी तिथि तिथि ही था, लोग अक्सर दिन को ही तिथि मान लेते हैं, परंतु वास्तविकता ऐसी नहीं है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कभी-कभी 24 घंटे का भी एक ही तिथि होती है 24 घंटे के बाद तिथि परिवर्तन होता है यह एक लॉजिक है ऐसा ही इस वर्ष 21 और 22 तारीख को हुआ है जोकि सष्टमी तिथि 2 दिन तक था।
कृष्ण झूला क्या है?
साधारण शब्दों में यदि कृष्ण झूला के संबंध में कहा जाए तो यह जैसा शब्द है वैसा ही कृष्ण झूला का कार्यक्रम भी होता है, एक छोटी सी पालकी में फुल हार से सजाकर एक झूला तैयार कर लिया जाता है तथा उसमें भगवान कृष्ण की बाल रूप प्रतिमा को स्थापना कर झूले का रूप दिया जाता है तथा रस्सी बांधकर ऊपर की ओर लटका दिया जाता है, झूला आरंभ करने से पूर्व किसी पुरोहित या ब्राम्हण के द्वारा पूजा याचना कर भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने हेतु रात और दिन वाद्य संगीत के माध्यम से भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है, लोग अलग-अलग गांव से टोली बनाकर कृष्ण झूले की कार्यक्रम में भाग लेते हैं तथा नृत्य एवं गायन प्रस्तुत कर भगवान कृष्ण को प्रसन्न किया जाता है, क्योंकि नृत्य एवं संगीत भी ईश्वर आराधना की एक महत्वपूर्ण कड़ी है, प्राचीन काल में या वैदिक काल में अप्सरा एवं गंधर्व लोग नृत्य एवं वाद्य कला से ही भगवान को प्रसन्न किया करते थे, इसी रूप को आज भी मान्यता के रूप में लोग मानते आ रहे हैं और भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
Krishna arati कृष्ण आरती
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रव में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला ।
गन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥